हिन्दुस्तान में हिंदी सिनेमा का आगाज़ बीसवीं शताब्दी के आगमन के साथ ही शुरू हो गया था उन दिनों जब दादा साहब फाल्के ने इंग्लेंड जाकर फिल्म निर्माण की विधाओं व उपकरणों की उपयोगिता को समझने का संकल्प किया था,ये सन 1911-12 की बात है जब दादा साहब ने अपने तमाम संपत्तियों यहाँ तक कि अपनी पत्नी के गहनें भी दांव पर रख दिए और भारतीय हिंदी सिनेमा के सफ़र पे अबाध रूप से चल पड़े I सन 1913 में पहली मूक चलचित्र "राजा हरिश्चंद्र " को दादा साहब फाल्के ने अपने सहयोगियों की मदद से बनाया,उन दिनों हमारे समाज में नाटक, नाच - नौटंकी में महिलाओं की भूमिका न के बराबर थी अगर किसी ने साहस कर भी लिया तो उसे सामाजिक प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ता था तद्स्वरूप इन गतिविधियों का दायरा पुरुषों तक ही सीमित था I
अगले दो दशक तक कमो - बेस फिल्मों का लहर रहा, मूक चित्र की वजह से जन मानस के मानस - पटल पर कोई ख़ास छवि सिनेमा नहीं बना पायी थी पर 1931में जब अर्देशिर ईरानी ने पहली बोलती फिल्म "आलम आरा " मास्टर बिट्ठल और जुबेदा को मुख्य भूमिका में रखकर बनाया तो शब्दों की संवेदना विदित हुई लेकिन,तकनीकी अभावग्रस्तता और सामाजिक रुढीवादिता ने सिने-स्नेहियों की एक न मानी ; विचारों का सैलाब अवमाननाओं की आधारशिला से टकराता रहा फिर वक़्त ने करवट ली और फिल्म निर्माताओं को अपने पुराने ठिकाने कलकत्ता से कला का साजो-सामन समेटकर बम्बई को कूच करना पड़ा I
बम्बई के आरंभिक फिल्म निर्माण कंपनियों में देविका रानी की "Bombay Talkies" मुख्य है जिन्होंने आगे चलकर दिलीप कुमार जैसे कलाकारों से हमारा तारूफ करवाया ,देविका रानी ने एक अभिनेत्री के तौर पर अपनी कला का लोहा मनवाया I हिंदी सिनेमा का सुनहरा काल 1950 से 1960 तक समझा जाता है --इस दौर के फिल्म निर्देशकों में सत्यजीत रे,श्याम बेनेगल, हृषिकेश मुखर्जी ,गुरु दत्त,कमाल अमरोही मुख्य हैं I अशोक कुमार ,दिलीप कुमार,राजकुमार ,मनोजकुमार नायक और वहीदा रहमान,सुचित्रा सेन,मीना कुमारी,नर्गिस मुख्य नायिकाओं में शुमार किये जाते हैं I गीतकारों में आनंद बख्शी,संतोष आनंद और संगीत में खैयाम, शंकर- जयकिशन स्मरणीय है I इस खास युग के अंत तक आते - आते फिल्मे रंगीन हो चुकी थी ,पोस्टरों को हाथों से बनाया जाता था
No comments:
Post a Comment
Please Comment Your Thoughts